health insurance वर्ष 2024 में बीमा कंपनियों के दावों की गणना पांच अलग-अलग बीमारियों के लिए अस्पताल में भर्ती होकर दावा करने वाले लोगों की संख्या के आधार पर की गई। इन पांचों में से सबसे ज्यादा उछाल सांस संबंधी बीमारियों से जुड़े दावों में देखने को मिला।
इस बीमारी के मरीजों पर होने वाले खर्च में भी 10-13 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। वर्ष 2024 में अस्पताल में भर्ती होकर दावा करने वाले कैंसर मरीजों की संख्या में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी हुई। इस दौरान कैंसर के मामलों में 12 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
इसके बाद दूसरे नंबर पर हृदय रोगी रहे। कंपनी द्वारा एकत्र किए गए आंकड़ों का विश्लेषण करने पर पता चला कि कैंसर के मामले में कुल बीमित लोगों की संख्या के सापेक्ष दावों का प्रतिशत (घटना) 40 वर्ष की आयु के बाद बढ़ता हुआ देखा गया है। महिलाओं में इसमें अचानक वृद्धि देखी गई। यह जानकारी मेडीअसिस्ट हेल्थकेयर सर्विसेज नामक कंपनी ने एकत्र की है।
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मेडीअसिस्ट स्वास्थ्य बीमा कंपनियों के लिए थर्ड पार्टी के तौर पर काम करती है। यह कंपनी देश के ज्यादातर अस्पतालों में भर्ती लोगों के दावों का निपटारा करती है। महिलाओं में कैंसर के मामले ज्यादा देखे जा रहे हैं
मेडिसिस्ट में सीनियर वीपी और डेटा साइंस हेड ध्रुव रस्तोगी ने बताया कि महिलाओं में कैंसर की दर पुरुषों की तुलना में 1.2 से 1.5 गुना ज्यादा देखी गई। इसके अलावा, आंकड़ों से यह भी साफ हुआ कि पुरुषों में हृदय संबंधी मामले महिलाओं की तुलना में करीब 1.3 से 1.5 गुना ज्यादा हैं। बाकी बीमारियों के लिए मेडिकल इन्फ्लेशन सिंगल डिजिट में रहा।
उदाहरण के लिए, कैंसर के इलाज की लागत में 6.5 फीसदी और हृदय रोगियों के लिए 8 फीसदी की बढ़ोतरी हुई।
वरिष्ठ नागरिकों के लिए अस्पताल में भर्ती होने का सबसे आम कारण मोतियाबिंद का इलाज
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वरिष्ठ नागरिकों के लिए अस्पताल में भर्ती होने का सबसे आम कारण मोतियाबिंद का इलाज था। सर्जरी के बारे में जागरूकता बढ़ी है और सुविधाएं भी बढ़ी हैं। इससे शुरुआती पहचान हो रही है और ज्यादा सर्जरी हो रही हैं।
बढ़ते प्रदूषण और कोविड के संभावित दीर्घकालिक प्रभावों को भी सांस की बीमारियों के इलाज में उच्च मुद्रास्फीति का कारण बताया गया। हालांकि, यह पूरी तरह से सही नहीं है। कोविड के बाद लोग सांस संबंधी बीमारियों को लेकर ज़्यादा सतर्क हैं, जो प्रदूषण की वजह से ज़्यादा गंभीर हो गई हैं।
शंकरन ने यह भी कहा कि हालांकि लोग पहले से ज़्यादा समय तक जी रहे हैं, लेकिन यह ज़रूरी नहीं है कि वे स्वस्थ हों। जैसे-जैसे हमारी अर्थव्यवस्था बढ़ रही है, खान-पान की आदतें भी बदल रही हैं और तनाव भी बढ़ रहा है। डायबिटीज़ और हाई बीपी के मामले बढ़ रहे हैं, जिससे दिल के रोगियों की संख्या बढ़ रही है।